अक्सर मिल जाते हैं वो हमें बाज़ारों में, मेलों में या फुटपाथ पर। कभी दुकानों में सजे होते हैं तो कभी यूँ ही एक पुरानी सी चादर बिछाकर बैठ जाते हैं। किसी से कुछ कहते नहीं हैं फिर भी सब की निगाहें उन पर रुक ही जाती हैं, हर…
अक्सर मिल जाते हैं वो हमें बाज़ारों में, मेलों में या फुटपाथ पर। कभी दुकानों में सजे होते हैं तो कभी यूँ ही एक पुरानी सी चादर बिछाकर बैठ जाते हैं। किसी से कुछ कहते नहीं हैं फिर भी सब की निगाहें उन पर रुक ही जाती हैं, हर…