...... पर मैं नहीं हूँ
(किसी का अचानक यूँ चले जाना किसी को अच्छा नहीं लगता पर क्या किसी ने सोचा की वो क्यों बिना कुछ कहे चला जाता है मैंने कोशिश की है उसके मन की बात लिखने की मैं कितनी कामयाब हुई ये आप बताएंगे। ... )
..... पर मैं नहीं हूँ
मुझे यकीन था कि आज तो आओगे ज़रूर....... पर मैं नहीं हूँ
मुझसे करनी होगी तुम्हे बहुत सी बातें शायद ......पर मैं नहीं हूँ
आज तुम्हारी हर बात में ज़िक्र सिर्फ़ मेरा होगा .....पर मैं नहीं हूँ
आज मैं सिर्फ अच्छा मिलूंगा
आज मैं सिर्फ अच्छा मिलूंगा
कोई ख़ामी नज़र नहीं आएँगी तुम्हे मुझमे
तुम्हारी इन बातों इतराने के लिए..... मैं नहीं हूँ
आज हर बात करोगे मेरी
हर आदतों का ज़िक्र करोगे
बचपन की कई शरारतें याद आएँगी
नुक्कड़ की हर ठिठोली याद आएँगी
मेरी पसंद नापसंद हर चीज़ का ज़िक्र करोगे
तुम्हारे साथ हंसने को खिलखिलाने को...... पर मैं नहीं हूँ
नुक्कड़ की हर ठिठोली याद आएँगी
मेरी पसंद नापसंद हर चीज़ का ज़िक्र करोगे
तुम्हारे साथ हंसने को खिलखिलाने को...... पर मैं नहीं हूँ
आज भी बदले नहीं हो शिकायत आज भी है तुम्हे
कि तुमसे तो कह सकता था अपनी हर बात ... 'तुम मेरे अपने जो हो'
पर गलत हो तुम
मेरी हर ख़ामोशी ने बहुत कुछ कहा था तुमसे
मेरी हर चुभन का ज़िक्र था उसमें
मैंने सोचा तुम तो समझोगे, क्यूंकि तुम मेरे अपने जो हो
पर अफ़सोस
जिसका ज़िक्र मैंने अल्फ़ाज़ों में किया
तुमने उसे भी तवज़्ज़ो न दी
आज आये हो मिलने मुझसे मेरा हाल पूछने आये हो....
पर क्या करूं ?.... मैं नहीं हूँ
कि तुमसे तो कह सकता था अपनी हर बात ... 'तुम मेरे अपने जो हो'
पर गलत हो तुम
मेरी हर ख़ामोशी ने बहुत कुछ कहा था तुमसे
मेरी हर चुभन का ज़िक्र था उसमें
मैंने सोचा तुम तो समझोगे, क्यूंकि तुम मेरे अपने जो हो
पर अफ़सोस
जिसका ज़िक्र मैंने अल्फ़ाज़ों में किया
तुमने उसे भी तवज़्ज़ो न दी
आज आये हो मिलने मुझसे मेरा हाल पूछने आये हो....
पर क्या करूं ?.... मैं नहीं हूँ
काश! पहले आते
कुछ वक़्त मेरे साथ रहते
तो शायद मैं साथ होता
यूँ ही अपनापन जताते ,बचपन में एक बार फिर से ले जाते तो ...
शायद मैं भी साथ होता
तुम्हे पता है कितनी सारी बातें थीं मेरे पास
कितना कुछ कहना था तुमसे
कितनी मस्तियाँ बची हैं अभी ,
कितनी सारी चाय की चुस्कियां बची हैं अभी
कितना कुछ बचा है...... पर क्या करूँ मैं नहीं हूँ
आज भी मुझे कायर कहोगे तुम
कि ज़िन्दगी से हार गया
पर फिर से गलत हो तुम
सिर्फ ये ज़िन्दगी ही तो मेरे साथ थी केवल
साथ तो सबने छोड़ा था
ये ज़िन्दगी ही तो मेरी साथी थी वर्ना तो तन्हा ही था
पर शिकायत है तुमसे
जब ढूंढा तुम्हे तुम ही नहीं थे
बातों में ही सही मेरा हाल पूछते तो बताता तुम्हें
कि कितना समंदर था मेरे अंदर
हर वो कहानी पूरी करता जो अधूरी छोड़ी थी मैंने
काश फिर से एक बार उसी अपनेपन से कहते कि You can tell me तो शायद मैं भी साथ होता
पर आज तुम हो मेरे सामने बेबस खड़े हो
आँखों में शिकायत और आंसू लेकर...... पर क्या करूँ मैं नहीं हूँ
तो शायद मैं साथ होता
यूँ ही अपनापन जताते ,बचपन में एक बार फिर से ले जाते तो ...
शायद मैं भी साथ होता
तुम्हे पता है कितनी सारी बातें थीं मेरे पास
कितना कुछ कहना था तुमसे
कितनी मस्तियाँ बची हैं अभी ,
कितनी सारी चाय की चुस्कियां बची हैं अभी
कितना कुछ बचा है...... पर क्या करूँ मैं नहीं हूँ
आज भी मुझे कायर कहोगे तुम
कि ज़िन्दगी से हार गया
पर फिर से गलत हो तुम
सिर्फ ये ज़िन्दगी ही तो मेरे साथ थी केवल
साथ तो सबने छोड़ा था
ये ज़िन्दगी ही तो मेरी साथी थी वर्ना तो तन्हा ही था
पर शिकायत है तुमसे
जब ढूंढा तुम्हे तुम ही नहीं थे
बातों में ही सही मेरा हाल पूछते तो बताता तुम्हें
कि कितना समंदर था मेरे अंदर
हर वो कहानी पूरी करता जो अधूरी छोड़ी थी मैंने
काश फिर से एक बार उसी अपनेपन से कहते कि You can tell me तो शायद मैं भी साथ होता
पर आज तुम हो मेरे सामने बेबस खड़े हो
आँखों में शिकायत और आंसू लेकर...... पर क्या करूँ मैं नहीं हूँ
... सोनाली सिंह मिश्रा
1 Comments
बहुत सराहनीय
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