घरौंदा
हमेशा प्रकृति कुछ न कुछ ऐसा करती है जिससे कि हर कोई विवश हो जाता है, अपनी प्रत्येक चीज़ को पुनः निर्मित करने के लिए ,और इस प्रकार संसार में पुनः एक परिवर्तन स्थापित हो जाता है। कहते हैं कि परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है। संसार की प्रत्येक वस्तु नश्वर है ,परिवर्तनशील है और शायद प्रकृति का यह कृत्य भी परिवर्तन स्थापित करने की प्रकिया का एक हिस्सा है।
आज सभी व्यस्त हैं अपनी दैनिकचर्या को पुनः स्थापित करने में , एक नव - निर्माण करने में। पता है कल रात मेरा घरौंदा भी टूट गया परन्तु मैं निराश नहीं हूँ , हाँ मुझे थोड़ा दुःख ज़रूर है कि मेरे बच्चे आज बेघर हो गये हैं परन्तु मुझे विश्वास है कि मैं उन्हें जल्द ही पहले से भी ज्यादा मजबूत घरौन्दा दूंगी, जिसमें मेरे बच्चे बिना किसी डर के निडर हो कर आराम से खुश रहेंगे और मैंने तो इसकी तैयारी भी कर ली है। मैंने एक तिनका भी ढूंढ लिया है। अब आप सोंच रहे होंगे की भला एक तिनके से मेरा घरौंदा कैसे बनेगा ? परन्तु यह एक तिनका मात्र नहीं है मेरी उम्मीद है, मेरे घर में लगने वाला पहला तिनका है और मुझे ये बात पता है कि मैं जल्द ही और भी तिनके ढूंढ लूंगी और अपने बच्चों के लिए एक घरोंदा बनाऊँगी।
अक्सर देखा है मैंने मनुष्य को हारते हुए टूटते हुए सब तो होता है उसके पास बस कमी होती है ,तो उम्मीद की। हर तरह से सक्षम होने के बावजूद भी न जाने क्यों वो उम्मीद छोड़ देता है , टूट जाता है छोटी - छोटी बातों पर ईश्वर को कोसता नज़र आता है। वो क्यों परिवर्तन शीलता को सहज स्वीकार नहीं करता जबकि वो जानता है कि परिवर्तन तो अपरिवर्तन शील है जो आज है वो कल नहीं होगा। परिवर्तन उसके लिए बंधन नहीं है बल्कि प्रत्येक बंधनो को तोड़ते हुए उसके लिए नए आयामों को तय करता है। परिवर्तन एक कसौटी है ,जो उसे पहले से भी ज्यादा सशक्त बनाता है, जीवन की अन्य सभी आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार करता है, जिससे कि वो हमेशा आगे बढ़ता रहे। कभी रुके नहीं, निरंतर नए लक्ष्यों को हासिल करता रहे परन्तु इससे इतर मनुष्य अपना जीवन व्यतीत करता है ईश्वर को कोसते हुए और वो स्वयं ही अपने दुःखों का कारण बनता है।
काश ! मनुष्य अपनी उम्मीद कभी न छोड़े स्वयं पर विश्वास करे तो वह असम्भव को भी संभव कर सकता है क्योंकि प्रत्येक सीमा हमें रोकने के लिए नहीं होती बल्कि आगे बढ़ाने के लिए होती है।
मैं अपनी उम्मीद कभी नहीं छोड़ती और प्रत्येक सरहद को लाँघते हुए हर रोज़ नए आयामों को छूती हूँ। मैं इस परिवर्तन का एक हिस्सा हूँ । मैं खुश हूँ कि मैं एक पंछी हूँ। मैं प्रत्येक दिन ईश्वर का शुक्रिया अदा करती हूँ न कि उससे कभी कोई शिकवा करती हूं। मैं खुश हूँ लोगों को खुशी देकर न कि मैं उनके दुखों का कारण बनती हूँ। मैं खुश हूँ प्रकृति की गोद में जीवन व्यतीत करके, बिना किसी सीमाओं के निरंतर इस अनन्त नीले आकाश में उड़ते हुए ,नयी उंचाइयों को छूते हुए , नव - निर्माण करते हुए ,एक योद्धा की तरह जीवन व्यतीत करते हुए।
सोनाली सिंह मिश्रा ...
3 Comments
Inspiring
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