चारों ओर रंग बिरंगे फूल थे और हल्की - हल्की चलने वाली ठंडी हवा उन फूलों की खुशबू को पूरे आंगन में फैला रही थी ऐसी खुशबू जिससे किसी का भी मन कुछ गाने - गुनगुनाने और नाचने का करने लगे पर ये क्या यहाँ तो  विधाता इस सुन्दर और मनमोह लेने वाले वातावरण से अनभिज्ञ किसी और ही कार्य में व्यस्त थे, वे व्यस्त थे नयी- नयी रचनाओं में और मन ही  मन अपनी इस कुशलता पर अभिमानित होने में।  पूरा दिन कठिन कार्य करने के बाद ईश्वर को जब सुस्ताने का मन हुआ तो चल दिए अपने झरोखे से बाहर का आनंद लेने। ठंडी - ठंडी हवा और रंग बिरंगे सुगंधित पुष्पों की खुशबू से स्वयं को  सराबोर करने। झरोखे के पास बैठते ही उनमें  न जाने कैसी ऊर्जा और स्फूर्ति भर जाती थी और वह प्रफुल्लित मन से वहां घंटों अपना समय व्यतीत करते।  नीचे देखते ही विधाता की नज़र  हरे - भरे वन पर्वतों और उन पर बने झरनों पर गयी तो उन्हें लगा की जैसे वो इन पर्वतों के शिखर पर बैठे हों और इस शीतल  स्वच्छ जल वाले झरने का मीठा जल  पी रहे हों।  सुगन्घित पुष्पों की खुशबू जैसे ही उन तक पहुंची तो ऐसा लगा कि  जैसे सैकड़ों इत्र की शीशियां स्वयं पर उड़ेल ली हों।  वन में जीव जंतुओं  को क्रीड़ा करते देखा तो ऐसा लगा की स्वयं भी उनके साथ - साथ खेल रहे हों  गुलाटियां  भर रहे हों।  इन सभी के बीच कभी स्वयं को गवां बैठते तो कभी अपनी ही  रचनाओं और  कला कौशल पर अभिमानित हो  उठते  कि  " मैं ही वो कुशल कारीगर हूँ ,सर्वश्रेष्ठ रचयिता जिसने  इतनी सुन्दर रचनाएँ की  हैं। " वह केवल शरीर से अपने आँगन  के झरोखे पर थे परन्तु उनकी आत्मा धरती लोक की सुंन्दरता का आनंद लेते हुए धरती लोक पर ही विचरण कर रही थी। वह पूर्णतयः  स्वयं की रचनाओं  की सुन्दरता में खोये हुए थे परन्तु सहसा उनका चेहरा पीला पड़ा गया ,उनका शरीर ऊर्जाहीन हो गया वो हैरान थे वो दृश्य देखकर और सोंच रहे  थे कि क्या यह वही मनुष्य है जिसकी रचना के बाद उस खुदा ने सेवकों  को सजदा करने का हुक्म दिया था , जिसकी सुंदरता में कई दिन तक वह खोया हुआ था , उनकेआँगन में कई दिनों तक उत्सव  हुआ था , जिस मनुष्य को ईश्वर की सर्वश्रेठ रचना कहा गया था।  जिस मनुष्य को ईश्वर  ने मष्तिष्क के रूप में चेतना और ह्रदय के रूप में संवेदना से सुसज्जित किया था।  आज उसका ये विकृत  और हिंसक  रूप देखकर विधाता स्तब्ध है।  वो समझ ही नहीं पा रहे थे कि उनकी इस  उत्कृष्टतम रचना में ये  विकृति कैसे  आ गयी। उनका आँगन काफी समय से खाली है , उन्होंने कोई भी नयी रचना नहीं की। न जाने अपने ही घर में कहां  खो गए हैं? उनका वो आँगन , उनकी सभी रचनात्मक सामग्रियां  और उनका वो झरोखा सुना पड़ा है।    उनका वो  झरोखा  और सभी  उनके उस थके हुए परन्तु कार्य संतुष्टि की ऊर्जा से परिपूर्ण चेहरे  का इंतज़ार कर रहे हैं  और मैं भी।     

                                                                                                                                   सोनाली सिंह मिश्रा ... 

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